लालबहादुर शास्त्री

किसी गाँव में रहनेवाला एक छोटा लड़काअपने
दोस्तों के साथ
गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस
लौटते समय जब
सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के
किराये के लिए
जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी।
लड़का वहीं ठहर
गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और
थोड़ी देर
मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने
दोस्तों से नाव
का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे
इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।
उसके दोस्त नाव मेंबैठकर नदी पार चले गए। जब
उनकी नाव
आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े
उतारकर उन्हें सर
पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय
नदी उफान पर
थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार
करने
की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने
भी लड़के
को रोकने की कोशिश की।
उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे
की परवाह न
करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़
था और
नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने
उसे
अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह
लड़कारुका नहीं,
तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच
गया।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’.

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