महात्माजी

एक बार एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बनाकर रहते थें, एक दिन कहीं से एक बिल्ली का बच्चा रास्ता भटककर आश्रम में आ गया । महात्माजी ने उस भूखे प्यासे बिल्ली के बच्चे को दूध-रोटी

खिलाया । वह बच्चा वहीं आश्रम में रहकर पलने लगा। लेकिन उसके आने के बाद महात्माजी को एक समस्या उत्पन्न हो गयी कि जब वे सायं ध्यान में बैठते तो वह बच्चा कभी उनकी गोद में चढ़ जाता, कभी कन्धे या सिर पर बैठ जाता । तो महात्माजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर कहा देखो मैं जब सायं ध्यान पर बैठू, उससे पूर्व तुम इस बच्चे को दूर एक पेड़ से बॉध आया करो। अब तो यह नियम हो गया, महात्माजी के ध्यान पर बैठने से पूर्व वह बिल्ली का बच्चा पेड़ से बॉधा जाने लगा । एक दिन महात्माजी की मृत्यु हो गयी तो उनका एक प्रिय काबिल शिष्य उनकी गद्दी पर बैठा । वह भी जब ध्यान पर बैठता तो उससे पूर्व बिल्ली का बच्चा पेड़ पर बॉधा जाता । फिर एक दिन तो अनर्थ हो गया, बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी हुयी कि बिल्ली ही खत्म हो गयी। सारे शिष्यों की मीटिंग हुयी, सबने विचार विमर्श किया कि बड़े महात्माजी जब तक बिल्ली पेड़ से न बॉधी जाये, तब तक ध्यान पर नहीं बैठते थे। अत: पास के गॉवों से कहीं से भी एक बिल्ली लायी जाये। आखिरकार काफी ढॅूढने के बाद एक बिल्ली मिली, जिसे पेड़ पर बॉधने के बाद महात्माजी ध्यान पर बैठे।

विश्वास मानें, उसके बाद जाने कितनी बिल्लियॉ मर चुकी और न जाने कितने महात्माजी मर चुके। लेकिन आज भी जब तक पेड़ पर बिल्ली न बॉधी जाये, तब तक महात्माजी ध्यान पर नहीं बैठते हैं। कभी उनसे पूछो तो कहते हैं यह तो परम्परा है। हमारे पुराने सारे गुरुजी करते रहे, वे सब गलत तो नहीं हो सकते । कुछ भी हो जाये हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ सकते।

यह तो हुयी उन महात्माजी और उनके शिष्यों की बात । पर कहीं न कहीं हम सबने भी एक नहीं; अनेकों ऐसी बिल्लियॉ पाल रखी हैं । कभी गौर किया है इन बिल्लियों पर ?सैकड़ों वर्षो से हम सब ऐसे ही और कुछ अनजाने तथा कुछ चन्द स्वार्थी तत्वों द्वारा निर्मित परम्पराओं के जाल में जकड़े हुए हैं।

ज़रुरत इस बात की है कि हम ऐसी परम्पराओं और अॅधविश्वासों को अब और ना पनपने दें , और अगली बार ऐसी किसी चीज पर यकीन करने से पहले सोच लें की कहीं हम जाने – अनजाने कोई अन्धविश्वास रुपी बिल्ली तो नहीं पाल रहे ?

ऐसा है !

ऐसा है !

जितने भी मैजिस्ट्रेट, मैजेस्टि, डॉक्टर, कलेक्टर, अध्यापक, वकील. एस. पी. , डी.एस. पी. , कार्यरत, रिटायर्ड हैं; ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि सबके बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़े, वहीं ज्ञानार्जन करें l

जो ऐसा नहीं करे उसे आज्ञा उलंघन में अर्थ दंड का प्रवधान हो, सभी सरकारी आय अर्जन करने वाले अगर ऐसा करने लगे तो इन सारकारी स्कूलों का शैक्षणिक अस्तर क्या होगा यह कोई कहने की बात नहीं है l

अध्यापक किस तरह ज्ञानार्पण करेंगे, सही समय पर विद्यालय आयेंगे, आवशयक मानदंड पर शिक्षा देंगे उच्च स्तरीय व मध्य स्तरीय जीवन यापन करने के साथ-साथ उन निम्न स्तरीय जीवन यापन करने वालों को भी उस पद्धिति की शिक्षा का भान हो सकेगा, जिन पर आज सरकारी स्कूलों में होने के कारण कोई बिशेष दृष्टिपात नहीं किया जाता है l

और जो बेतन भोगी उम्र के तक़ाजे से या किसी और कारण शिक्षा देने में असमर्थ हो गए हैं, या जो किसी जुगाड़ी परक्रिया के तहत शिक्षक बने हुए हैं वह स्वत: स्तीफ़ा सौंप देंगे, और उनकी जगह योग्य और कुशल नए युवाओं को मैका भी मिल सकेगा l

ऐसे में सभी को समान रूप यथोचित शिक्षा का प्रावधान हो सकेगा, और शैक्षिक आधार पर भेद शून्य होने पर जो शिक्षा के स्तर में जो अचानक उछाल आने की संभावना होगी l

तो ऐसे में भी भारत देश के बच्चे भी नई मिसाल कायम कर सकेंगे l